हारीत धर्मसूत्र निरुपित विषय दिक्चालन...

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धर्मसूत्रसंस्कृत ग्रन्थ


https://commons.wikimedia.org/wiki/File:Dharma_sutra.jpgधर्मसूत्रकारबौधायन धर्मसूत्रआपस्तम्ब धर्मसूत्रवासिष्ठ धर्मसूत्रोंतन्त्रवार्तिकमनुस्मृतिकुल्लूक भट्टनासिकमहाराष्ट्रमैत्रायणी संहिताआनन्दाश्रम–संस्करण




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हारीत की मान्यता अत्यन्त प्राचीन धर्मसूत्रकार के रूप में है। बौधायन धर्मसूत्र, आपस्तम्ब धर्मसूत्र और वासिष्ठ धर्मसूत्रों में हारीत को बार–बार उद्धत किया गया है। हारीत के सर्वाधिक उद्धरण आपस्तम्ब धर्मसूत्र में प्राप्त होते हैं। तन्त्रवार्तिक* में हारीत का उल्लेख गौतम, वशिष्ठ, शंख और लिखित के साथ है।




हारीत की मान्यता अत्यन्त प्राचीन धर्मसूत्रकार के रूप में हैं


परवर्ती धर्मशास्त्रियों ने तो हारीत के उद्धरण पौनः पुन्येन दिये हैं, किन्तु हारीत धर्मसूत्र का जो हस्तलेख उपलब्ध हुआ है और जिसका स्वरूप 30 अध्यायात्मक है, उसमें इनमें से बहुत से उद्धरण नहीं प्राप्त होते हैं।
धर्मशास्त्रीय निबन्धों में उपलब्ध हारीत के वचनों से ज्ञात होता है कि उन्होंने धर्मसूत्रों में वर्णित प्रायः सभी विषयों पर अपने विचार प्रकट किए थे। मनुस्मृति के व्याख्याकार कुल्लूक भट्ट के अनुसार हारीत धर्मसूत्र का प्रारम्भिक अंश इस प्रकार था –


अथातो धर्मं व्याख्यास्यामः। श्रुतिप्रमाणकों धर्मः। श्रुतिश्च द्विविधा–वैदिकी तान्त्रिकी च।'*

नासिक (महाराष्ट्र) जनपद के इस्मालपुर नामक स्थान पर हारीत धर्मसूत्र का एक हस्तलेख वामनशास्त्री को मिला था जिसमें 30 अध्याय हैं। यह अत्यन्त भ्रष्ट है और इसमें उद्धृतांश भी नहीं मिलते, इस कारण काणे प्रभृति मनीषियों ने इसकी प्रामाणिकता पर सन्देह व्यक्त किया है।



निरुपित विषय


हारीत धर्मसूत्र में निरूपित विषयों में मुख्य है–


धर्म का मुल स्रोत, उपकुर्वाण और नैष्ठिक संज्ञक द्विविध ब्रह्चारी, स्नातक, गृहस्थ, आरण्यक (वानप्रस्थ) सन्यासी, भक्ष्या–भक्ष्य, जन्म और मृत्युजन्य अशौच, श्राद्ध, पवित्र व्यवहार, पंचमहायज्ञ, वेदाध्ययन और अनध्याय, राजकर्म, शासन–विधि, न्याय–व्यवहार विधि, स्त्रियों के कर्त्तव्य, प्रायश्चित्त इत्यादि।


हारीत ने अष्टविध विवाहों में 'क्षात्र' और 'मानुष'– ये दोनों नाम ऐसे दिए गए हैं, जो अन्यत्र नहीं मिलते। अष्टविध विवाहों के अन्तर्गत आर्ष और प्राजापत्य का उल्लेख नहीं है। ब्रह्मवादिनी स्त्रियों को वेदाध्ययन का अधिकार दिया गया है।


अभिनय–वृत्ति को घृणा की दृष्टि से देखा गया है और रंगकर्मी ब्राह्मणों को देवकर्म तथा श्राद्ध–दृष्टि से निषिद्ध बतलाया गया है।


डॉ॰ कालन्द ने हारीत धर्मसूत्र में मैत्रायणी संहिता का 'भगवान् मैत्रायणी' के रूप में आदरपूर्वक उल्लेख देखकर इसका सम्बन्ध मैत्रायणी संहिता के साथ स्थापित करने का प्रयत्न किया है।* किन्तु यह अभी विवादग्रस्त है। जीवानन्द के द्वारा सम्पादित धर्मशास्त्र संग्रह में हारीत धर्मशास्त्र को 'लघु हारीत स्मृति' और 'वृद्ध हारीत स्मृति' – इन दो रूपों में प्रकाशित किया गया है। लघु हारीत स्मृति में सात अध्याय और 250 पद्य हैं। वृद्ध हारीत स्मृति में आठ अध्याय और 2600 पद्य हैं। इस पर वैष्णव सम्प्रदाय का प्रभाव स्पष्ट है।
आनन्दाश्रम–संस्करण में इन्हीं आठ अध्यायों को 11 अध्यायों में विभक्त कर दिया गया है।







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